આપણે બધા જિંદગીના પ્રવાસી છીએ. ઘણીવાર મનુષ્ય કોઈ કારણોથી મંજિલથી ભટકી જાતો હોય છે અને જિંદગીથી હારી જતો હોય છે. મનુષ્ય ઘણી વાર જીવનમાં દિશાહીન બની જતો હોય છે. આમ તો જીદંગી એક પ્રવાસ જ છે ત્યારે આ પ્રવાસમાં ભટકાય જવું સ્વાભાવિક છે પણ યોગ્ય સમયે ફરીથી તેને દિશા ચીંધવી પણ જરૂરી છે. આવી જ મજાની અર્થસભર વાતોને આવરી લીધી છે શ્યામ સોનીએ તેની હિન્દી કવિતા મુસાફિરમાં! વાંચો તેમની કવિતા ‘મુસાફિર’
‘मुसाफिर’
कहाँ जा रहा है; ठहर जा मुसाफिर ; जहा जा रहा है वहाँ है अँधेरा |
तारो- सितारों को बादलोने घेरा; रात है अँधेरी, दूर है सवेरा |
कहा जा रहा है.
प्रेम डोर टूट गई, मोती सब बिखर गए; नाम मुख में रह गया, परमात्मा बिसर गए !
इंसान की करतूत देख देव भी मुकर गए; न जाने आज देवी और देवता किधर गए?
इधर जाएगा , चाहे उधर जाएगा —-; जिधर भी जाएगा उधर खड़ा है लुटेरा !
कहा जा रहा है
अटक जाय ना कही ; भटक जाय ना कही ; पथ जो ना मिला सही , तो उलझ जाएगा कही |
वनचरों के बिच से, निशाचरो के बिच से , बच न पाए तो शिकार ही न बन जाए कही |
भूतो की नगरी , निशाचरो की बस्ती; डगर डगर पर है , दानवो का डेरा !
कहा जा रहे है
कई जनम के बाद को, ये लम्बी लम्बी रात है; अन्य रात्रियो से इसका दूर ही प्रभात है|
है रात भर की बात , गान तान में गुजार दे; प्रभात तक ठहर जा, क्यों है चलने को अधीरा |
सजाले तेरे साज और सुर मिळाले आज; बसाले अपने साथ देवताओ का बसेरा |
कहा जा रहा है
इतिहास को नै उषा के , रंग दिखाना है तुजे ; मिटाने भेद रेखा मिलन गीत गाना है तुजे |
नई उषा की शाम भी रंगीन बनाना है तुजे , धरती से आदमी को आसमा पे लाना है तुजे |
वही वही जिंदगी , वही वही फेरा !! कब तक रहेगा यही रवैया तेरा!
कहा जा रहा है.
– श्याम जे. सोनी