દિવસે ને દિવસે પૃથ્વી પર પ્રાકૃતિક આપદાઓ વધતી જાય છે. ત્યારે માણસની શક્તિઓ કુદરત સામે ટૂંકી પડી રહી છે. કુદરતી આપદાઓ માણસને પોતાની મંજિલથી દૂર જતા અટકાવે છે અને પોતાની શક્તિને પારખવાનો અવસર આપે છે. તમે જે મજાના વિચાર વાંચ્યા તે વિચાર છે પોરબંદરના લેખક શ્યામ સોનીના. માણો તેમનો લેખ જેનું નામ છે-માનવીય મંજિલ

‘मानवीय मंजिल’

आज ‘वर्तमान’ को जिस नजरिया से देखते हुवे यह लिखा जा रहा है, व्यक्तत्व हेतु कलम उलजन में है, और सुलझाने में उसे मै मददरूप हु | पर धारा जो फ्रंट ही फ्रंट में आगे बढ़ो की तर्ज पर बहालकर मानव को उन्मूलन स्थिति के भॅवर में घुमा रही है, उसे कैसे रोकी जाय व् रिव्हर्स में बहाय जाय? उल्जन में स्वयं भी भ्रमित हु!

‘देश’ व् ‘दुनिया’ को बदलने में ‘प्राकृतिक आपदाए’ जितनी सफल रही है , मानवीय शक्तियों का अभाव नहीं, ‘मानवीय शक्तियों का व्यय निरर्थक व् निखरन निरर्थक ही विफलता का कारण है| प्राकृतिक आपदाए तो भूले भटको को, पुनः पुनः मानवीय गंतव्य पथ पर लाने की भूमिका रूप है| जीवात्मा को मानव तक पहुंचाने में सर्वोच्य योनि तक प्रकृति ने साथ दिया|

अब मानवीय पथ अपनाकर ‘प्रकृति के प्रयास को सार्थक करना’ मानव ही का फर्ज है|

‘सर्व सिद्धिया’ एकत्रित होकर , मंजिल पर इन्तेजार कर रही है!

-एस. जे. सोनी। ‘कला पथिक’

© 2011 - 2024 Abtak Media. Developed by ePaper Solution.